तवायफ और मैं ( कहानी अनुशीर्षक में) कानपुर जाने का टिकट मेरे हाथ में था,ट्रेन आने में कुछ ही वक्त थे लेकिन यात्रा पर जाने की उत्सुकता और मां से मिलने पर आनंद की कल्पना घड़ी से नजर हटने नहीं दे रही थी..... अंततः वह समय आ गया जब उस गाड़ी के आने के निर्देश दिए गए जिसपे मुझे जाना था,स्टेशन लोगों से तो खचाखच भरा हुआ था लेकिन कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी नजरों में थोड़ा सा भी अपनापन हो....आखिर इंतजार खत्म होता है और ट्रेन आकर सामने ही रुक जाती है,लोग एक के बाद एक धड़ाधड़ अंदर घुसने लगते हैं.....परायापन वहां इस कदर हावी था की मेरी किसी से ये