शायद लोग भुल गए मां सीता को जो श्री राम की मर्यादा थीं और रावन की मौत भी....!! आज किसी घर मे बेटी का जन्म हुआ, सब कहते रहे बेटी क्या नहीं कर सकती? बेटियां भी बेटों से कम नहीं हैं !मगर बेटी के माता पिता कहते हैं ये हमारे लिए बोझ है एक घर की बेटी अच्छी पढ़ाई लिखाई करती है फिर अपने माता पिता के लिए नौकरी करती है पूरा सहयोग करती है और पिता कहते हैं -इससे अच्छा तो एक बेटा होता ! ये कहानी एक घर परिवार की नहीं है, ये कहानी उस सोच की है जहाँ बेटी के होने पर ही खुद को बदनसीब समझा जाता है !.ऐसी सोच बेटियों का क्या भला कर सकती है? शायद कुछ नहीं !माता पिता ज़ब खुद की ही सोच को नहीं बदल पाते तो लोग क्या बदल सकते हैं? नहीं बदल सकते !!!!! एक बेटी के जन्म पर ऐसी बातें की जाती हैं और ज़ब वही बेटी नाम रोशन करने लगे तो समाज को बताया जाता है -बेटी कहाँ कम हैं? उस पल सवाल आता है की बेटी को क्यूँ झूठी तस्सली दी जाती है ? क्यूँ हर कदम पर जताया जाता है की वो बेटी है और बेटों की बराबरी नहीं कर सकती? क्यूँ बेटी के होने पर दुख जताया जाता है? क्यूँ उसे नाम देने से पहले बदनसीबी का नाम दिया जाता है? क्यूँ??????????????????