प्रेम
....
प्रेम के कई प्रारूप होते हैं, कई चरण होते हैं, ऐसा कहते हैं। पर, जब चरम आता है, प्रेम का तो ना कोई रूप, ना कोई चरण, ना आंसू, ना मुस्कान, ना स्पर्श, ना अलगाव! क्या अर्श, क्या फर्श, क्या वेश, क्या हर्फ, क्या कविता और क्या स्वप्न!
अतल हृदय में कुछ चमकीला सा सारे घावों के ऊपर मरहम की तरह फैला हुआ,
कुछ बर्फीला-सा हो आग सी धधकती विरक्त तर-बतर भावनाओं पर ठंडक बरसाता,
कोई गीत सा, कोई धुन जैसे मीठी-सी हर कर्कश तानों को ध्वनि विहीन करती हुईं,
क्योंकि कितनी ही इच्छाओं, भावनाओं और प्रवृत्तियों #yqbaba#yqdidi#yqtales#bestyqhindiquotes#a_journey_of_thoughts#unboundeddesires#lovepoemsarebest