किन सांझो की बात करूं जिनकी रात नहीं आयी... उलझे उलझे लिपट गये सपनें.....सारे सिमट गये, अँखियों से रूठी निंदिया अधर शुष्क सन्निकट हुए! मिलकर जिनसे बातें होती उनकी बात नहीं आयी...! संदली साँझ सुगंध लिए जाने कितने अनुबंध लिए, रहा प्रतिक्षित विकल हृदय मिलन गीत और छंद लिए! इच्छित किंचित स्वप्नों की वो सौगात नहीं आयी...! वो निशा कभी तो आयेगी संचित मधु उर तक लायेगी, हृद सागर में तेज लहर है कश्ती कब तट तक लायेगी! कितनी सांझे बीत गई पर वो रात नहीं आयी...!! ©®shubhendrakumarj..✍🏻 #शुभाक्षरी #साँझ #प्रतीक्षा