लिप्त हैं आज हमारे समाज मे
हजारो बुराइयाँ लाखों में कुरीतियां उनमें से-
कुछ छपती है अखबारों में
कुछ दिख जाती है आम बाजारों में
कुछ बिकती है पैसों में
कुछ करा जाती है गरीबी में
कुछ भुखमरी से उपजती है
कुछ फैलती है गंदे संगती में #OpenMIC#yqdidi#आवरण#खिचड़ी#अनभिज्ञ#raipuropenmic