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स्त्रियों को छूने से पहले, तुम छुओ उनका मन....! (

स्त्रियों को छूने से पहले, तुम छुओ उनका मन....!

(Today i want everyone to read it & please also share your thoughts) समझ नहीं आ रहा की आज शुरु कहां से करूं लिखना... विचारों ने आज दिमाग पर इतना घर कर लिया की ये मुझे इस बढ़ती रात के हर पल में परेशानी के सिवाय कुछ और नहीं दे रहे....

प्रेम... आख़िर क्या होता है एक पुरुष के लिए...? आख़िर पुरुष कैसे करता है प्रेम...?
अकसर देखा है... तीन शब्द I love you.... इन्हें बोलने के चार दिन बाद ही people start taking & asking about the sex....! But why...? अब मैं पूछना चाहूंगी की क्या यहां ये प्रेम ने चाहा होगा...? जी नहीं... प्रेम तो रूह का होता है न... और sex ज़रूरत है तुम्हारे वासना भरे मन की...! 
    देखा है मैंने की एक स्त्री को की कैसे कर देती है अपने समस्त स्वरूप को समर्पित वो... अपने प्रेम को और सिर्फ़ प्रेम के लिए। स्त्री निर्वस्त्र सिर्फ़ प्रेम के लिए होती और पुरुष के लिए वो उसकी वासना पूर्ति का एक मात्र साधन हो जाती है...। मुझे शिकायत है आज उस रब से... आख़िर क्यूं बनाया स्त्री को इतना सहज...? क्यूं बनाया ये उसका इस तरह का शरीर की कितने ही लोगों की नज़रों से कितनी ही बार होता होगा न उसका बलात्कार....!
   ये कह देना कितना आसान है न की प्रेम में पूर्णतः समर्पित किया जाता है... अकसर सुना है मैंने लोगों को कहते हुए की तन मन से समर्पित होना...। लेकिन मैंने तो सुना है कि प्रेम सिर्फ मन से और मन का होता है, और जब हो जाएं मन से एक तो क्या जरूरी है तन से एक होना, अगर कोई स्त्री कहती है की वो पूर्णतः तुम्हारी है मगर मन से, और वो अपने तन को नहीं बांटना चाहती किसी के भी साथ... तो क्या आप ये कहोगे की ये प्रेम नहीं है या यूं कहूं की तन को समर्पित नहीं कर सकती तो मतलब तुमसे अनंत प्रेम नहीं कर सकती...? "सुना है इश्क़ रुहानी होता है, जिस्मानी नहीं...!" मगर अफ़सोस, की शायद ये बात सिर्फ़ कहने को ही है...! 
      प्रेम... शायद स्त्रीयों की वजह से ही बचा है इस दुनियां में, वरना पुरुषों ने दी है तो सिर्फ़ घृणा हमें इस अपने बलात्कारी मन से....!
स्त्रियों को छूने से पहले, तुम छुओ उनका मन....!

(Today i want everyone to read it & please also share your thoughts) समझ नहीं आ रहा की आज शुरु कहां से करूं लिखना... विचारों ने आज दिमाग पर इतना घर कर लिया की ये मुझे इस बढ़ती रात के हर पल में परेशानी के सिवाय कुछ और नहीं दे रहे....

प्रेम... आख़िर क्या होता है एक पुरुष के लिए...? आख़िर पुरुष कैसे करता है प्रेम...?
अकसर देखा है... तीन शब्द I love you.... इन्हें बोलने के चार दिन बाद ही people start taking & asking about the sex....! But why...? अब मैं पूछना चाहूंगी की क्या यहां ये प्रेम ने चाहा होगा...? जी नहीं... प्रेम तो रूह का होता है न... और sex ज़रूरत है तुम्हारे वासना भरे मन की...! 
    देखा है मैंने की एक स्त्री को की कैसे कर देती है अपने समस्त स्वरूप को समर्पित वो... अपने प्रेम को और सिर्फ़ प्रेम के लिए। स्त्री निर्वस्त्र सिर्फ़ प्रेम के लिए होती और पुरुष के लिए वो उसकी वासना पूर्ति का एक मात्र साधन हो जाती है...। मुझे शिकायत है आज उस रब से... आख़िर क्यूं बनाया स्त्री को इतना सहज...? क्यूं बनाया ये उसका इस तरह का शरीर की कितने ही लोगों की नज़रों से कितनी ही बार होता होगा न उसका बलात्कार....!
   ये कह देना कितना आसान है न की प्रेम में पूर्णतः समर्पित किया जाता है... अकसर सुना है मैंने लोगों को कहते हुए की तन मन से समर्पित होना...। लेकिन मैंने तो सुना है कि प्रेम सिर्फ मन से और मन का होता है, और जब हो जाएं मन से एक तो क्या जरूरी है तन से एक होना, अगर कोई स्त्री कहती है की वो पूर्णतः तुम्हारी है मगर मन से, और वो अपने तन को नहीं बांटना चाहती किसी के भी साथ... तो क्या आप ये कहोगे की ये प्रेम नहीं है या यूं कहूं की तन को समर्पित नहीं कर सकती तो मतलब तुमसे अनंत प्रेम नहीं कर सकती...? "सुना है इश्क़ रुहानी होता है, जिस्मानी नहीं...!" मगर अफ़सोस, की शायद ये बात सिर्फ़ कहने को ही है...! 
      प्रेम... शायद स्त्रीयों की वजह से ही बचा है इस दुनियां में, वरना पुरुषों ने दी है तो सिर्फ़ घृणा हमें इस अपने बलात्कारी मन से....!

समझ नहीं आ रहा की आज शुरु कहां से करूं लिखना... विचारों ने आज दिमाग पर इतना घर कर लिया की ये मुझे इस बढ़ती रात के हर पल में परेशानी के सिवाय कुछ और नहीं दे रहे.... प्रेम... आख़िर क्या होता है एक पुरुष के लिए...? आख़िर पुरुष कैसे करता है प्रेम...? अकसर देखा है... तीन शब्द I love you.... इन्हें बोलने के चार दिन बाद ही people start taking & asking about the sex....! But why...? अब मैं पूछना चाहूंगी की क्या यहां ये प्रेम ने चाहा होगा...? जी नहीं... प्रेम तो रूह का होता है न... और sex ज़रूरत है तुम्हारे वासना भरे मन की...! देखा है मैंने की एक स्त्री को की कैसे कर देती है अपने समस्त स्वरूप को समर्पित वो... अपने प्रेम को और सिर्फ़ प्रेम के लिए। स्त्री निर्वस्त्र सिर्फ़ प्रेम के लिए होती और पुरुष के लिए वो उसकी वासना पूर्ति का एक मात्र साधन हो जाती है...। मुझे शिकायत है आज उस रब से... आख़िर क्यूं बनाया स्त्री को इतना सहज...? क्यूं बनाया ये उसका इस तरह का शरीर की कितने ही लोगों की नज़रों से कितनी ही बार होता होगा न उसका बलात्कार....! ये कह देना कितना आसान है न की प्रेम में पूर्णतः समर्पित किया जाता है... अकसर सुना है मैंने लोगों को कहते हुए की तन मन से समर्पित होना...। लेकिन मैंने तो सुना है कि प्रेम सिर्फ मन से और मन का होता है, और जब हो जाएं मन से एक तो क्या जरूरी है तन से एक होना, अगर कोई स्त्री कहती है की वो पूर्णतः तुम्हारी है मगर मन से, और वो अपने तन को नहीं बांटना चाहती किसी के भी साथ... तो क्या आप ये कहोगे की ये प्रेम नहीं है या यूं कहूं की तन को समर्पित नहीं कर सकती तो मतलब तुमसे अनंत प्रेम नहीं कर सकती...? "सुना है इश्क़ रुहानी होता है, जिस्मानी नहीं...!" मगर अफ़सोस, की शायद ये बात सिर्फ़ कहने को ही है...! प्रेम... शायद स्त्रीयों की वजह से ही बचा है इस दुनियां में, वरना पुरुषों ने दी है तो सिर्फ़ घृणा हमें इस अपने बलात्कारी मन से....! #स्त्री_सम्मान #वैश्या #स्त्रीत्व #स्त्रीअस्तित्व #soulfulshunya