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ख़ाक हों जाऊं इस मिट्टी में तब तुम होली मना लेना..

ख़ाक हों जाऊं इस मिट्टी में
तब तुम होली मना लेना...©

कवि...बिभीषण गिरी, जागजी (उस्मानाबाद)

ख़ाक हों जाऊं इस मिट्टी में तब तुम होली मना लेना...© कवि...बिभीषण गिरी, जागजी (उस्मानाबाद)

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