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ग़रीब ठिठुरते रहे ठंड की रातों में, बिछी नहीं रज़ा

ग़रीब ठिठुरते रहे ठंड की रातों में,
बिछी नहीं रज़ाई, आग भी है ख्वाबों में।
अमीर चाय पकोड़ों संग कहें, "क्या बहार है,"
किसे दिखे ग़रीब की तकलीफ़ इन नक़ाबों में।

Rahul Raj

©Evelyn Seraphina
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