कब तेरे हुस्न के इमकान समझते होंगे । इंसान बस तुझे इंसान समझते होंगे । थोड़ा मोहताज़ रहा कर मेरी जां । शहर के लोग तुझे मेरी जान समझते होंगे । सुनो मैं मीर का दीवान समझता हूं उसे । जो नमाज़ी हैं, कुरान समझते होंगे । मुझे पूंछ तेरे होंठ पे, तिल है क्यों कर । ये नुक्ता कहां नादान समझते होंगे । gajal- अमीर इमाम साहिब # ग़ज़ल# अमीर इमाम साहिब #