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कब तेरे हुस्न के इमकान समझते होंगे । इंसान बस तुझे

कब तेरे हुस्न के इमकान समझते होंगे ।
इंसान बस तुझे इंसान समझते होंगे ।
थोड़ा मोहताज़ रहा कर मेरी जां । 
शहर के लोग तुझे मेरी जान समझते होंगे ।
सुनो मैं मीर का दीवान समझता हूं उसे ।
जो नमाज़ी हैं, कुरान समझते होंगे ।
मुझे पूंछ तेरे होंठ पे, तिल है क्यों कर ।
ये नुक्ता कहां नादान समझते होंगे ।

gajal- अमीर इमाम साहिब # ग़ज़ल# अमीर इमाम साहिब #
कब तेरे हुस्न के इमकान समझते होंगे ।
इंसान बस तुझे इंसान समझते होंगे ।
थोड़ा मोहताज़ रहा कर मेरी जां । 
शहर के लोग तुझे मेरी जान समझते होंगे ।
सुनो मैं मीर का दीवान समझता हूं उसे ।
जो नमाज़ी हैं, कुरान समझते होंगे ।
मुझे पूंछ तेरे होंठ पे, तिल है क्यों कर ।
ये नुक्ता कहां नादान समझते होंगे ।

gajal- अमीर इमाम साहिब # ग़ज़ल# अमीर इमाम साहिब #
azeemkhan5403

Azeem Khan

Gold Star
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