घाव चुपके से रिसने लगे कलम थाम ली ख्वाब पानी से बहने लगे कलम थाम ली जमाना हमें चोट देता रहा नहीं थे वही खोट गिनता रहा कभी होठ भूले से खिल जो गए कसम से जमाने के दिल जल गए पांव मेरे कभी जो डिगे कलम थाम ली घाव चुपके से रिसने लगे कलम थाम ली नजारे सभी दूर होते रहे मगर लब्ज़ सीने में सोते रहे बहारों के मौसम में वीरानियां तसब्बुर में ख्वाबों की नीलामियां दांव सारे ही उल्टे पड़े कलम थाम ली घाव चुपके से रिसने लगे कलम थाम ली तुम्हें सारी खुशियाँ मुझे गम मिले दुआ मांगकर हमने सजदे किए नहीं रास आई मोहब्बत मेरी न भूले मगर मुझसे सूरत तेरी सांस जब जब ये थमने लगे कलम थाम ली घाव चुपके से रिसने लगे कलम थाम ली ख्वाब पानी से बहने लगे कलम थाम ली ~ मनोज कुमार "मँजू" #कलम_थाम_ली #गीत #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू #मोहब्बत़