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चाहता तो हूँ कि रुक जाये ये वक़्त, मेरे लिए दिन निक

चाहता तो हूँ कि रुक जाये ये वक़्त, मेरे लिए
दिन निकलते ही जाने शाम कब हो जाती है!
मैंने बड़ी मुद्दत से संभला था ये दिल,मेरे लिए
धड़कनो कि आवाज़ भी सरेआम हो जाती है!
अब हाल-ए-दिल बताते नहीं बनता है किसी को
इन चरागों कि लौ जाने कहा गुम हो जाती है?

©Guftgoon Lafzon Se GLS
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