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अमृता प्रीतम की कलम से प्रस्तुत है- मेरी माँ की क

 अमृता प्रीतम की कलम से प्रस्तुत है- 
मेरी माँ की कोख मज़बूर थी...
मैं भी तो एक इन्सान हूँ
आज़ादियों की टक्कर में
उस चोट का निशान हूँ
उस हादसे की लकीर हूँ
जो मेरी माँ के माथे पर
लगनी ज़रूर थी
 अमृता प्रीतम की कलम से प्रस्तुत है- 
मेरी माँ की कोख मज़बूर थी...
मैं भी तो एक इन्सान हूँ
आज़ादियों की टक्कर में
उस चोट का निशान हूँ
उस हादसे की लकीर हूँ
जो मेरी माँ के माथे पर
लगनी ज़रूर थी

अमृता प्रीतम की कलम से प्रस्तुत है- मेरी माँ की कोख मज़बूर थी... मैं भी तो एक इन्सान हूँ आज़ादियों की टक्कर में उस चोट का निशान हूँ उस हादसे की लकीर हूँ जो मेरी माँ के माथे पर लगनी ज़रूर थी #Kalamse