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बस चुप-चाप कहीं अकेला चला जा रहा हूं, ना तो मुझे त

बस चुप-चाप कहीं अकेला चला जा रहा हूं,
ना तो मुझे तालाश है मंज़िल की और 
ना ही फिकर है अपनी सुध-बुध की,
बस कन्धे पर लाश उठा के चल रहा हूं,
और वो भी है मेरे खुद की.....

©13.WriterMk #alonesoul
बस चुप-चाप कहीं अकेला चला जा रहा हूं,
ना तो मुझे तालाश है मंज़िल की और 
ना ही फिकर है अपनी सुध-बुध की,
बस कन्धे पर लाश उठा के चल रहा हूं,
और वो भी है मेरे खुद की.....

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mohitkumar3411

13.WriterMk

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