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कभी कभी मैं बहुत फिक्र करता हूँ तुम्हारी। फिर मैं

कभी कभी मैं बहुत फिक्र करता हूँ तुम्हारी।

फिर मैं रुक कर जाँच करता हूँ अपने फिक्र की- 
कि कहीं फिक्र के शक्ल में मैं तुम्हें दबाना तो नहीं चाहता।

मैं पितृसत्ता वाले समाज में बड़ा हुआ हूँ-
 इसलिए खुद को हमेशा शक के घेरे में रखता हूँ।

अपने उस राक्षस को साध रखता हूँ, 
जो तुम्हें बांध मेरी औरत बना देना चाहता है।

तुम्हारी आज़ादी पर मेरा कोई हक़ न हो- 
मेरे फिक्र की हरदम इसलिए जांच हो।

कुछ भी हूँ तुम्हारा आखिर 
तुम्हारे स्वयं से ज्यादा नहीं हूँ मैं।।




















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©Saurabh Anand
  #outofsight #womenday