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मैं तेरी अनुगामिनी थी,संगिनी थी, भोर सी थी,और मैं

मैं तेरी अनुगामिनी थी,संगिनी थी,
भोर सी थी,और मैं ही यामिनी थी,
उच्श्रृंखल हिमगिरि की,शैल सी थी,
थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

     तेरी हर इक वेदना में,मैं थी मरहम,
     तेरी हर इक बात का,थी मैं ही माध्यम,
     स्वप्न की हर कल्पना का,सार मैं थी,
     तेरे पथ में दीप-सी,हर बार मैं थी,
     राग में डूबे थे तुम,मैं रागिनी थी,
     थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

झेलती थी मैं सदा,तुझको धरा-सी,
शांत बहती थी मैं जैसे,निर्झरा-सी,
वेग अपनी भावनाओं पर था मेरा,
दे दिया उपहार में,तुमने अंधेरा,
किंतु सूने नभ की,मैं भी दामिनी थी,
थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

      शूल-सा भेदा हृदय..,मेरा शिवाला,
      मेरी आशाओं का दर्पण,तोड़ डाला,
      छीनती हूँ तुझसे,अब अधिकार तेरा,
      हाँ,यही है तुझसे,बस प्रतिकार मेरा,
      अंक में तेरे कभी,सौभागिनी थी,
      थाह थी सागर की,तेरी वामिनी थी।       
                    ©®प्रतिष्ठा"प्रीत"







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मैं तेरी अनुगामिनी थी,संगिनी थी,
भोर सी थी,और मैं ही यामिनी थी,
उच्श्रृंखल हिमगिरि की,शैल सी थी,
थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

     तेरी हर इक वेदना में,मैं थी मरहम,
     तेरी हर इक बात का,थी मैं ही माध्यम,
     स्वप्न की हर कल्पना का,सार मैं थी,
     तेरे पथ में दीप-सी,हर बार मैं थी,
     राग में डूबे थे तुम,मैं रागिनी थी,
     थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

झेलती थी मैं सदा,तुझको धरा-सी,
शांत बहती थी मैं जैसे,निर्झरा-सी,
वेग अपनी भावनाओं पर था मेरा,
दे दिया उपहार में,तुमने अंधेरा,
किंतु सूने नभ की,मैं भी दामिनी थी,
थाह थी सागर की, तेरी वामिनी थी,

      शूल-सा भेदा हृदय..,मेरा शिवाला,
      मेरी आशाओं का दर्पण,तोड़ डाला,
      छीनती हूँ तुझसे,अब अधिकार तेरा,
      हाँ,यही है तुझसे,बस प्रतिकार मेरा,
      अंक में तेरे कभी,सौभागिनी थी,
      थाह थी सागर की,तेरी वामिनी थी।       
                    ©®प्रतिष्ठा"प्रीत"







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