ग़ज़ल दर्द ऐसे हैं बहुत जिनको नहीं सह पाते बात ये और है आँखों से नहीं बह पाते फोर सीटर में कभी पाँच भी बन जाते हैं इक मकां में ही मगर दो भी नहीं रह पाते हाल दिल का तो सुनाते हैं सभी को लेकिन जिससे कहना है उसी से ही नहीं कह पाते यूँ मकां तो हैं सटे पर हैं अलग दीवारें एक दीवार में अब लोग नहीं रह पाते कोशिशें रोज ही करते हैं नया लिखने की फिर भी लगता है कि कुछ है जो नहीं कह पाते @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद"