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White विरक्त मन चिंतन औ आत्मोत्कर्ष पर बस चलता है

White विरक्त मन चिंतन औ आत्मोत्कर्ष पर बस चलता है 
उत्कर्ष के दंभ का नहीं अभिलाषी,इष्टसिद्धि कि प्राप्ति करता हैं
रज रज का हो प्रमुदित वंदन,मृगतृष्णा कि मुक्ति का अभिनंदन
पग के मोहफास को त्यज्य करने कि,हर दिव्य धरा का हो वंदन

तृष्णा से,लोभ से हटकर ही मानव खुद को पढ़ता है 
रज को ध्यातव्य बनाने वाला,अरि भी गुरु सम ही रहता है
जो भान करा दे मूल्यों का सत स्वागत युग उनका करता है
जो मुक्त करे पगबंध वसन से सत स्वागत उनका हीं करता है 
विरक्त मन चिंतन औ आत्मोत्कर्ष पर बस चलता है 

कण को चेतन कि मिलन बिंदु का ,यहां अवसर कौन दिलाता है
इस नश्वर रज को पुष्टिमार्ग का ,रहा ,भला क्या दिखाता है
जिसे भान मीमांसा के भ्रम का,ज्ञानदीप्त वहीं तो करता हैं
हर बाधा से दूर जो कर दे,निर्दिष्ट नहीं प्रदीप्त रहता है 
विरक्त मन चिंतन औ आत्मोत्कर्ष पर बस चलता है 
राजीव

©samandar Speaks
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