पारदर्शी मोती ************* कही टूटी कोई माला तो बिखरे मोती। ग़ुमा हो आया तेरे अश्को का। क्या ढलकते है वो अब भी यूंही तेरे कपोलो पर। पारदर्शिता लिए हुए। जो दर्शाया करती थी। तुम्हारी मोहब्बत। मुझसे बिछोह के नाम से ही। लड़ी सी बन स्फटिक। तेरे रुख़सार को सजाया करती थी। पारदर्शिता से याद आया। तेरा प्रेम मेरे लिए क्या था। दूर हम ज़रा क्या हुए सब धुआँ था। कलुष अँधेरो में खो गई वो मोहब्बत अपनी। जो कभी रहती तो थी धड़कनो में तेरी। फख़त यें उम्र बस अपनी बढ़ाती थी। सुधा भारद्वाज"निराकृति" विकासनगर उत्तराखंड #पारदर्शी मोती