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मरने से पहले इंसान,भूल जाता है द्वेष दुश्मनी..! ग

 मरने से पहले इंसान,भूल जाता है द्वेष दुश्मनी..!
गले लग कर सारे गिले शिक़वे मिटाना चाहता है..!

ख़ुद हार कर मार,कर मन का दानव..!
खुशियों के पल,बीते जो भ्रम में कल लुटाना चाहता है..!

क्या खोया क्या पाया,सारी उम्र भर यूँ तकरार कर..!
फ़रार कर ज़िद्द का परिंदा,नम्र पड़ाव में जाना चाहता है..!

ज़िन्दगी के सफ़र का,था बस यहीं तक बसर..!
असर छोड़ सकूँ कुछ पल का,असरदार हो जाना चाहता है..!

मिले क्षमा किये हुए,कर्मों का मुझे भी..!
बाद मरने के मुक्त,यातनाओं से होना चाहता है..!

मिला न मुझे साथ,किसी का भी जीते जी..!
अंतिम यात्रा में चार कन्धों का,साथ पाना चाहता है..!

चल बसा यूँ बसा कर,अपने ख्वाबों का महल..!
पहल रिश्तों में न किस्तों में,कैसे भी कराना चाहता है..!

©SHIVA KANT
  #marnesepehle