ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से, इसकी कीमत देनी होती है, अधूरी सांसों से| हकीकत बदलती नहीं बस धुंधला जाती है, लकीरें कहाँ मिटती हैं, किसी के हाथों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… आदमी अकेला था और अकेला ही रहेगा, क्या उम्मीद लगाई है तुमने रिश्ते-नातों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… सच को महसूस करो और सच रहने दो, इसे चेहरा न दो ज़माने की फरेब बातों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… कुछ अनसुना सा तो हुआ नहीं है यहाँ, सुनते आये हैं यही फ़साना हम हज़ारों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… उस रोज़ जो तुमने देखा था मेरी आँखों में, रिसता हुआ लम्हा था, ज़हन की दरारों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… काले बादल फिर छाये हैं उसके फलक पर, फिर उलझा है ‘अंकुर, काली अँधेरी रातों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से, इसकी कीमत देनी होती है, अधूरी सांसों से| हकीकत बदलती नहीं बस धुंधला जाती है, लकीरें कहाँ मिटती हैं, किसी के हाथों से| ख्वाब देखा न करो, खुली आँखों से… आदमी अकेला था और अकेला ही रहेगा,