✍️ आज बच्चों को देख दिल फिर बच्चा बन बैठा.. उन पुरानी यादों में पुनः जा सिमट बैठा.. वो कागज की नांव और पेड़ों की छांव.. वो बारिशों की बूंदें उसमें भीगने की उम्मीदें.. उसमें छपकना, बिछलना, और फिर गिरना.. हँसी की ठहाको से खुशियों का मिलना.. शरारतें, बदमाशियां, मनमानियां और शैतानियाँ.. रात में नींद लाने के लिए दादी मां की कहानियां.. वो सब कितनी हसीं थी मेरी दुनियां.. ना ही किसी का डर और ना ही किसी की फ़िकर.. हर जगह तो बस अपनी शैतानियों का ही ज़िकर.. काश वो बादशाहत वाले दिन फिर से वापस आ जाते.. हम बड़े होकर भी एक बार फिर से छोटे हो जाते.. कृष्ण कान्त मिश्र एक रुख बचपन की ओर..