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तलाशता रहा जिस ज़िंदगी को उम्रभर, उसके हिस्से में

 तलाशता रहा जिस ज़िंदगी को उम्रभर,
उसके हिस्से में वह कभी न आई! 
भटकता रहा जिस खुशी की तलाश में वह, 
उसके किस्से में वह कभी न आई। 
ज़िंदगी जीता ज़िंदगी से दूर, 
वह ठहरा एक मजदूर मजबूर। 
सुबह से शाम होती, फिर शाम से रात हो जाती, 
वक़्त के इस सफ़र में जाने रोशनी कहाँ खो जाती?
 तलाशता रहा जिस ज़िंदगी को उम्रभर,
उसके हिस्से में वह कभी न आई! 
भटकता रहा जिस खुशी की तलाश में वह, 
उसके किस्से में वह कभी न आई। 
ज़िंदगी जीता ज़िंदगी से दूर, 
वह ठहरा एक मजदूर मजबूर। 
सुबह से शाम होती, फिर शाम से रात हो जाती, 
वक़्त के इस सफ़र में जाने रोशनी कहाँ खो जाती?