तलाशता रहा जिस ज़िंदगी को उम्रभर, उसके हिस्से में वह कभी न आई! भटकता रहा जिस खुशी की तलाश में वह, उसके किस्से में वह कभी न आई। ज़िंदगी जीता ज़िंदगी से दूर, वह ठहरा एक मजदूर मजबूर। सुबह से शाम होती, फिर शाम से रात हो जाती, वक़्त के इस सफ़र में जाने रोशनी कहाँ खो जाती?