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आओ मिलकर रो लें, बड़ा सुकून मिलता है कभी कभी रोने

आओ मिलकर रो लें,
बड़ा सुकून मिलता है कभी कभी रोने से,
सूख चुकी हैं पलकों को अश्कों से भिंगो ले,
दर्द हमने भी देखा है,तुमने भी देखा है,
कहना कितना आसान हो जाता है लोगों को,
मत लांघो,ये लक्ष्मण रेखा है,
पर जब दर्द बेइंतहां हो,अपनी ही सीमा पार कर दे,
प्रेम का भी व्यापार कर दे,
इक दर्द,विरह आशिक का,जीना मुहाल कर दे,
इक दर्द बाप के कांधे पे हो बेटे का जनाजा,
महसूस करके देखो,सिर्फ महसूस करो,
बो दर्द बाप का कैसा हाल कर दे,
दर्द जब अपनी पराकाष्ठा के अंतिम सोपान पर होता है,
उसे ही कहते हैं,निष्ठुर मानव मन भी रोता है,
उठने लगता है विश्वास,विधि के विधान से,
पर ये भी अकाट्य सत्य है,दर्द और बढ़ जाता है,
मुंह मोड़ लेना,या हार जाना दुनिया जहान से, दर्द की पराकाष्ठा,
आओ मिलकर रो लें,
बड़ा सुकून मिलता है कभी कभी रोने से,
सूख चुकी हैं पलकों को अश्कों से भिंगो ले,
दर्द हमने भी देखा है,तुमने भी देखा है,
कहना कितना आसान हो जाता है लोगों को,
मत लांघो,ये लक्ष्मण रेखा है,
पर जब दर्द बेइंतहां हो,अपनी ही सीमा पार कर दे,
प्रेम का भी व्यापार कर दे,
इक दर्द,विरह आशिक का,जीना मुहाल कर दे,
इक दर्द बाप के कांधे पे हो बेटे का जनाजा,
महसूस करके देखो,सिर्फ महसूस करो,
बो दर्द बाप का कैसा हाल कर दे,
दर्द जब अपनी पराकाष्ठा के अंतिम सोपान पर होता है,
उसे ही कहते हैं,निष्ठुर मानव मन भी रोता है,
उठने लगता है विश्वास,विधि के विधान से,
पर ये भी अकाट्य सत्य है,दर्द और बढ़ जाता है,
मुंह मोड़ लेना,या हार जाना दुनिया जहान से, दर्द की पराकाष्ठा,
rajeshrajak4763

Rajesh rajak

New Creator
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