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महफ़िल का दस्तूर है, साथ निभाना ही होगा। ग़म हो या

महफ़िल का दस्तूर है, साथ निभाना ही होगा।
ग़म  हो या  ख़ुशी, हरपल मुस्कुराना ही होगा।
ख़ामोशियों से यहाँ, दिल की बात नहीं बनती।
दिल में क्या छुपा रखा है, तुम्हें बताना ही होगा।

शेर-ओ-शायरी का दौर, अक्सर चलता है यहाँ।
आज अपनी कोई नज़्म, तुम्हें सुनाना ही होगा।
गूँजती है अक्सर, घुँघरुओं की झंकार कानों में।
ज़ेहन में जो गीत आए, उसे गुनगुनाना ही होगा।

शाम ढलती है यहाँ, अक्सर पैमानों  के  साथ।
आज दो घूँट जाम के, तुम्हें छलकाना ही होगा।
चराग़-ए-शब  से रोशन, होती  हैं  ये महफ़िलें।
ढ़लती शाम  संग वक़्त, तुम्हें बिताना ही होगा।

लोगों के किस्से  ख़ूब सुने हैं, हमने  महफ़िलों में,
कोई किस्सा अपना आज, तुम्हें सुनाना ही होगा।
भूल जाओ गर खुद को, इस महफ़िल में साहिल।
वादा करो  लौट  कर  फ़िर, तुम्हें आना ही होगा।— % & ♥️ Challenge-849 #collabwithकोराकाग़ज़

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महफ़िल का दस्तूर है, साथ निभाना ही होगा।
ग़म  हो या  ख़ुशी, हरपल मुस्कुराना ही होगा।
ख़ामोशियों से यहाँ, दिल की बात नहीं बनती।
दिल में क्या छुपा रखा है, तुम्हें बताना ही होगा।

शेर-ओ-शायरी का दौर, अक्सर चलता है यहाँ।
आज अपनी कोई नज़्म, तुम्हें सुनाना ही होगा।
गूँजती है अक्सर, घुँघरुओं की झंकार कानों में।
ज़ेहन में जो गीत आए, उसे गुनगुनाना ही होगा।

शाम ढलती है यहाँ, अक्सर पैमानों  के  साथ।
आज दो घूँट जाम के, तुम्हें छलकाना ही होगा।
चराग़-ए-शब  से रोशन, होती  हैं  ये महफ़िलें।
ढ़लती शाम  संग वक़्त, तुम्हें बिताना ही होगा।

लोगों के किस्से  ख़ूब सुने हैं, हमने  महफ़िलों में,
कोई किस्सा अपना आज, तुम्हें सुनाना ही होगा।
भूल जाओ गर खुद को, इस महफ़िल में साहिल।
वादा करो  लौट  कर  फ़िर, तुम्हें आना ही होगा।— % & ♥️ Challenge-849 #collabwithकोराकाग़ज़

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