कुएं ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा “पिता सभी नदी नाले आपके घर में जगह पाते हैं। आप प्रेम पूर्वक उन्हें अपने घर में स्थान देते हैं। मुझसे ही पक्षपात क्यों? पिता के लिए तो सभी बेटे बेटी एक से होते हैं।” समुद्र ने उत्तर दिया-”वत्स! अपने चारों ओर दीवार बनाकर बैठने पर ही तुम्हें अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित रहना पड़ा है। असीम का, अनन्त का प्यार पाने के लिए स्वयं को भी असीम बनना पड़ता है। अपनी सीमाओं का त्याग करके उन्मुक्त रूप से अपने आपको व्यक्त करो, अपनी दीवारों को हटा दो। धरती को हरी भरी, तृप्त करती हुई तुम्हारी धारा जब बन्धनमुक्त हो उठेगी तब तुम सहज ही मुझमें आ समाओगे।” कुएं ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा