कुन्ती एक नारी की व्यथा सुन के राज्य डोलता है सामने तो चूप मगर पर मौन मौन बोलता है बोलने से ऐसा जैसे परतें खोलता कोई राज था छिपा जो उनका सामने तोलता कोई। माँ ने अपनी कोख से जन्म दिए लाल को सामने खड़े है दोनो लिए धनुष,भाल को। देख माता कुन्ती का दिल था दहल उठा माता की ममता का आँसू सम्भाल उठा कर्ण को मनाने का प्रयत्न बहुधा किया पर कर्ण ने दोस्ती का फर्ज था अदा किया सुत पुत्र नाम से जब लोगों ने तोड़ा था तब भी दुर्योधन ने मेरा साथ नही छोड़ा था आज कैसे माँ के कारण उसका साथ छोड़ दूँ जिसने सहारा दिया उसको इस मोड़ पर तोड़ दूँ बोला वचन देता हूँ माँ तू राजमहल जा सोच मत की तेरा पुत्र विफल जाए सम्भाल जा एक पुत्र वीरगति को अगर जाएगा फिर से एक पुत्र आकर तेरा पांडव पुत्र बनाएगा।। ©Sandeep Sagar #कुन्ती #महाभारत #MereKhayaal