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सांध्य चन्द्र! संधि वेला में संधिपत्र सम्प्रेषित ह

सांध्य चन्द्र! संधि वेला में संधिपत्र सम्प्रेषित है
प्रीत! नहीं है युद्ध कोई।कैसी योजना योजित है
संभव है ज्योतित काया तुम सहज समर्पण कर दोगे
जिस प्रकाश से ज्योतित है मन कैसे दान उसे दोगे
बलिदानों की गाथा है ये पुण्य प्रेम की विलसित भू
निज माटी पे बलि-बलि जीवन प्रिय स्वदेश कैसे दे दूँ
निर्निमेष नयनों में उमगित स्वप्न पराग अनुराग भरे
रिक्त कोष भर देने को ये हिय का श्रेय कहो दूँ क्यों
प्रीत-कोष सहस भरने को सर्वस्व सहर्ष लुटा भी दूँ
नियति की निठुराई से क्योंकर जग बह जाने दूँ
ले जाओ ये संधिपत्र! ये बिंदु नहीं अनुमोदित है
प्रीत! नहीं है युद्ध कोई। कैसे योजना योजित है?
संलयित प्रणीत संज्ञा का कण-कण, रव-रव गुम्फित है
विजित नहीं वैभव ये कोई कैसे सहज विभाजित है
ताज नहीं ये किसी राज का किसी शीश पर शोभित है
प्रिय! हृद का मधुरिम स्पंदन है जीवन जिससे भाषित है
सांध्य चन्द्र! तुम्हीं कह दो अब प्रेम से क्या प्रत्याशित है



 #toyou#loveandpeace#yqheart#twilight#yqconsideration
सांध्य चन्द्र! संधि वेला में संधिपत्र सम्प्रेषित है
प्रीत! नहीं है युद्ध कोई।कैसी योजना योजित है
संभव है ज्योतित काया तुम सहज समर्पण कर दोगे
जिस प्रकाश से ज्योतित है मन कैसे दान उसे दोगे
बलिदानों की गाथा है ये पुण्य प्रेम की विलसित भू
निज माटी पे बलि-बलि जीवन प्रिय स्वदेश कैसे दे दूँ
निर्निमेष नयनों में उमगित स्वप्न पराग अनुराग भरे
रिक्त कोष भर देने को ये हिय का श्रेय कहो दूँ क्यों
प्रीत-कोष सहस भरने को सर्वस्व सहर्ष लुटा भी दूँ
नियति की निठुराई से क्योंकर जग बह जाने दूँ
ले जाओ ये संधिपत्र! ये बिंदु नहीं अनुमोदित है
प्रीत! नहीं है युद्ध कोई। कैसे योजना योजित है?
संलयित प्रणीत संज्ञा का कण-कण, रव-रव गुम्फित है
विजित नहीं वैभव ये कोई कैसे सहज विभाजित है
ताज नहीं ये किसी राज का किसी शीश पर शोभित है
प्रिय! हृद का मधुरिम स्पंदन है जीवन जिससे भाषित है
सांध्य चन्द्र! तुम्हीं कह दो अब प्रेम से क्या प्रत्याशित है



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