ज़िंदगी से अब मन ऊब गया है। रोज़ का वही राग, अब ग़वारा नहीं अब मन भर गया है ज़िंदगी से अब मन ऊब गया है। चाहत होती है रोज़ एक नए सवेरे की, पर हर शाम फिर पुरानी सुबह में ढल जाती है अब मन भर गया है ज़िंदगी से अब मन ऊब गया है। कुछ नए की ख़्वाहिश यहाँ तक खींच लाई पर अब सबर का बाँध टूट गया है अब मन भर गया है ज़िंदगी से अब मन ऊब गया है। या ख़ुदा आज़ाद कर! कुछ तो रहमत कर इस नाचीज़ को अब तो क़ुबूल कर क्यूंकि अब मन भर गया है ज़िंदगी से अब मन ऊब गया है। मन भर गया है कभी-कभी ऐसी भी अवस्था आती है जब किसी कारण से मन भर जाता है। मन की इसी अवस्था का वर्णन अपनी रचना में करें। Collab करें YQ DIDI के साथ। #मनभरगयाहै #collab