लाख ठोकर खाके भी हम हैं सम्हलते ही नहीं ज़िन्दगी से क्या गिला हम ही बदलते हैं नहीं वक़्त के साथ बदल जाती है हर शय: वक़्त भी जाने कहाँ ठहरे हुए हम ख़ुद ही चलते हैं नहीं है तैरना आता बख़ूब पर लहरों से दिल की यों लगी हम डूब जाने की ललक में पार लगते ही नहीं हर डूबता सूरज आख़िर लिखता सबक़ तो है सही हम चाँद के से काफ़ीरी! अल सुबह जगते ही नहीं रात के ये ख़्वाब दिन की लौ में दमकते ही नहीं और हम जज़्बे ख़्वाब दिन की लौ पकड़ते ही नहीं इन सियासतदानों की नीयत बदलती भी है कहीं और लोग ये ही सोचकर कोशिश भी करते हैं नहीं है लुटा जाता ये दिल! वतन! और ख़्वाब भी किस बेख़ुदी में उनसे हम दामन झटकते ही नहीं #tome#tomemories#ilovemyindia#trapsandtropes#yqlife#yqhindi