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तुम किसी और के हों जाओ ये मंजूर नहीं हम करीब होकर

तुम किसी और के हों जाओ ये
मंजूर नहीं 
हम करीब होकर भी एक ना हो पाए 
ये ज़िन्दगी का दस्तूर नहीं !! क़रीब है फिर भी फासले क्यूं है?
तुम किसी और के हों जाओ ये
मंजूर नहीं 
हम करीब होकर भी एक ना हो पाए 
ये ज़िन्दगी का दस्तूर नहीं !! क़रीब है फिर भी फासले क्यूं है?