****ग़ज़ल एक.... यूँ न मिल मुझसे खफा हो जैसे, साथ चल *बाद-ए-सबा* हो जैसे हिचकियां रात को आती ही रहीं तूने फिर याद किया हो जैसे ऐसे अनजान बने बैठे हो तुमको कुछ भी न पता हो जैसे ---एहसान दानिश ***ग़ज़ल एक और..... ख़ातिर ग़ज़नवीं साहब.. सुभानअल्लाह क्या फरमाते है ख़ूब के... (बस चंद लाइनें ही क्योंकि पूरा आएगा नहीं एक में इसलिए) *गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए लेकिन इतना तो हुआ कि कुछ लोग पहचाने गए मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुसवाई कहूँ मुझसे पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए वेहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर हो गईं हम जहां पहोंचे हमारे साथ वीराने गए गो ज़रा सी बात पर.... (आये हैं समझाने लोग, हैं कितने दीवाने लोग कहते है अब की ज़रा सी बात थी वो.... *बाद-ए-सबा-- सुबह की ख़ूबसूरत हवा *गो-- रुसवाई ज़रा सी बात थी वो... #ज़रासीबात #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi