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इक आशिक़ लाचार का दुःख है जैसे संसार का दुःख तेरा

इक आशिक़ लाचार का दुःख
है जैसे संसार का दुःख

तेरा दुःख तो अव्वल है
और उसपर घरबार का दुःख

दुःख ही दुःख है जीवन में
और फिर पहले प्यार का दुःख

तुमको देख न पाऊंगा
मुझको है इतवार का दुःख

ज़ुल्म सहो और चुप भी रहो
हाकिम के आज़ार का दुःख

एक तो तुझ से इश्क़ हुआ
फिर तेरे इंकार का दुःख

©Shadab Khan
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its_tezmi
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Shadab Khan

Bronze Star
Growing Creator

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