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तिल तिल मरते अरमाँ सारे, आँसुओं का सैलाब हैं लाते.

तिल तिल मरते अरमाँ सारे,
आँसुओं का सैलाब हैं लाते..!

जान लेकर जान कहने वाले,
थोड़ी सी तो वफ़ा निभाते..!

संग में रहकर संसार बसाया,
उसको न तुम यूँ ठुकराते..!

प्रेम का जो पौधा सींचा,
इश्क़ में न यूँ उजाड़ पाते..!

भरोसे का जो क़त्ल किया,
काश! उससे पहले हम मर जाते..!

न देखते ये मंजर बेरुखी का,
न ही खुद को बेबस पाते..!

जज़्बातों की बना क़ब्र हम,
उसमे कुछ यूँ ही सो जाते..!

न आते नज़र तुम्हें हम,
न ही खुद को यूँ तड़पाते..!

मर जाते बेशक़ तड़प कर,
तुम पर न ऐतबार जताते..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #PhisaltaSamay #Armaan