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" मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं शायद त



" मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं। " 

अमृता-इमरोज़ •

©Vishakha shrivastav
  #intejar