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""""""""""""""""""""""""""''"""""""""""" सोच ह

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    सोच ही सोच में ,सोचते रह गये !   
  दिल में रखा तुम्हें।                     
     पूजते रह गये !!:::१।                      

                  सारी व्याकुलता जलकर ,कुन्दन बनी रह गई ! 
          सारे मौसम अधुरे से "तुझ" बिन रह गये !
     दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये !!:::२

विरह में लिपटे पथरीले पथ पर, 
           मध्य मरूस्थल में "हम" बस खडे रह गये ! 
सोच ही सोच में, सोचते रह गये ! 
     दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये::::३

                 धुंधली सी पड़ने लगी, आंख में तस्वीर भी,     
 बीते लम्हे गड़े के गड़े रह गये !   
           दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये:::::४।  

              आहिस्ता आहिस्ता जख्म भरने तो लगे,   
      जाते जाते मगर कुछ "निशा"रह गये !
सोच ही सोच में सोचते रह गये !
         दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये !!::::::५

================
कवि कपिल
मेरठ

©Kavi Kapil #कवि कपिल
#मेरठ
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    सोच ही सोच में ,सोचते रह गये !   
  दिल में रखा तुम्हें।                     
     पूजते रह गये !!:::१।                      

                  सारी व्याकुलता जलकर ,कुन्दन बनी रह गई ! 
          सारे मौसम अधुरे से "तुझ" बिन रह गये !
     दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये !!:::२

विरह में लिपटे पथरीले पथ पर, 
           मध्य मरूस्थल में "हम" बस खडे रह गये ! 
सोच ही सोच में, सोचते रह गये ! 
     दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये::::३

                 धुंधली सी पड़ने लगी, आंख में तस्वीर भी,     
 बीते लम्हे गड़े के गड़े रह गये !   
           दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये:::::४।  

              आहिस्ता आहिस्ता जख्म भरने तो लगे,   
      जाते जाते मगर कुछ "निशा"रह गये !
सोच ही सोच में सोचते रह गये !
         दिल में रखा तुम्हें पूजते रह गये !!::::::५

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कवि कपिल
मेरठ

©Kavi Kapil #कवि कपिल
#मेरठ
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Kavi Kapil

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