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गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अर्

गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अर्जुन इस संसार में जो भी जन्म लेता है वह एक ना एक दिन मरने को अवश्य प्राप्त होता है यद्यपि जो मरता है उसका पुनर्जन्म भी होता है जो कि यह दोनों के वह बहुत अधिक दुख देने वाली होती है इसलिए हर व्यक्ति अपने मरण के भय से भयभीत रहता है व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन इस परीक्षा में बिता देता है कि उसको कभी मरने ही ना हो किंतु शहर भाव में ना तो जन्म मरण को रोका जा सकता है और ना ही मृत्यु व्यक्ति मरण के भय से मुक्त हो सकता है हालांकि इस सब से मुक्त होने का एक मार्क अवश्य आचार्य ने बताया कि जो निरंतर भगवान नमन सम्मेलन में लीन रहता है वह अवश्य एक दिन ऐसा आता है जब मरण के भयानक है से बचकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है शास्त्रों के अनुसार जन्म से ही और मरण से ही भयभीत होने का मुख्य कारण यह है कि हम उस सच्चिदानंद के स्वरूप को भूल जाते हैं जो ना कभी जन्म लेता है और ना कभी मृत्यु पाता है हम यह भी ध्यान नहीं रखते कि हम भी उसी परमात्मा का एक अंश है इसलिए जब वह जन्म जाता और मरता नहीं है तो हम भी ना मरते और जन्म लेते हमारा जो यह पंच भूत आत्मा शरीर है यही माया के प्रपंच से समय-समय पर अपना रुख बदलता रहता है इसलिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि नाथ जयते म्रियते वह कदाची पदार्थ ना कोई जन्मता है और ना मरता है आगे इस बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कहते हैं आधार किस जीव को कोई नहीं मार सकता वो तो शरीर ही मरने वाला है इस विचारों ने कहा है कि जो भी अपनी मृत्यु के भय से डरते हैं वह केवल अपने अज्ञान से ऐसा करते हैं जैसे आजन्म आत्मा के अमांश हैं उसी तरह हम भी आजन में इसने मृत्यु के भय आधार वहीं होना मृत्यु का भय व्यक्ति के पल प्रतिपल मारता है उसकी मुक्ति ही जीवन का आनंद प्रदान करने में सक्षम है

©Ek villain # मृत्यु का डर

#RepublicDay
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अर्जुन इस संसार में जो भी जन्म लेता है वह एक ना एक दिन मरने को अवश्य प्राप्त होता है यद्यपि जो मरता है उसका पुनर्जन्म भी होता है जो कि यह दोनों के वह बहुत अधिक दुख देने वाली होती है इसलिए हर व्यक्ति अपने मरण के भय से भयभीत रहता है व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन इस परीक्षा में बिता देता है कि उसको कभी मरने ही ना हो किंतु शहर भाव में ना तो जन्म मरण को रोका जा सकता है और ना ही मृत्यु व्यक्ति मरण के भय से मुक्त हो सकता है हालांकि इस सब से मुक्त होने का एक मार्क अवश्य आचार्य ने बताया कि जो निरंतर भगवान नमन सम्मेलन में लीन रहता है वह अवश्य एक दिन ऐसा आता है जब मरण के भयानक है से बचकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है शास्त्रों के अनुसार जन्म से ही और मरण से ही भयभीत होने का मुख्य कारण यह है कि हम उस सच्चिदानंद के स्वरूप को भूल जाते हैं जो ना कभी जन्म लेता है और ना कभी मृत्यु पाता है हम यह भी ध्यान नहीं रखते कि हम भी उसी परमात्मा का एक अंश है इसलिए जब वह जन्म जाता और मरता नहीं है तो हम भी ना मरते और जन्म लेते हमारा जो यह पंच भूत आत्मा शरीर है यही माया के प्रपंच से समय-समय पर अपना रुख बदलता रहता है इसलिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि नाथ जयते म्रियते वह कदाची पदार्थ ना कोई जन्मता है और ना मरता है आगे इस बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कहते हैं आधार किस जीव को कोई नहीं मार सकता वो तो शरीर ही मरने वाला है इस विचारों ने कहा है कि जो भी अपनी मृत्यु के भय से डरते हैं वह केवल अपने अज्ञान से ऐसा करते हैं जैसे आजन्म आत्मा के अमांश हैं उसी तरह हम भी आजन में इसने मृत्यु के भय आधार वहीं होना मृत्यु का भय व्यक्ति के पल प्रतिपल मारता है उसकी मुक्ति ही जीवन का आनंद प्रदान करने में सक्षम है

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Ek villain

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