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एक दिन मानो एक साल लग रहे थे, घड़ी के काँटे भी गुस्

एक दिन मानो एक साल लग रहे थे,
घड़ी के काँटे भी गुस्से में लाल लग रहे थे।

जो खिड़की से बाहर, मैंने राहों में झाँका,
आज कुछ उनमें भी मलाल लग रहे थे।

देखा खुद के चेहरे को सौ बार आईने में,
फिर वो पिम्पल्स भी कमाल लग रहे थे।

घर के हर कोने में दौड़ लगाया जो,
बेचारे दरवाज़े भी अब बेहाल लग रहे थे।

सोया फिर उठकर खाया और फिर सोया,
अब तो ये बिस्तर भी बवाल लग रहे थे।

ये कोरोना ने कैसा खौफ मचा रखा,
सारे सामान अब माया जाल लग रहे थे। Corona vacation😁


#ज़रूरीहै #doctorsday #yqdidi #yqtales #yqquotes #coronavirus #aestheticthoughts #poetry
एक दिन मानो एक साल लग रहे थे,
घड़ी के काँटे भी गुस्से में लाल लग रहे थे।

जो खिड़की से बाहर, मैंने राहों में झाँका,
आज कुछ उनमें भी मलाल लग रहे थे।

देखा खुद के चेहरे को सौ बार आईने में,
फिर वो पिम्पल्स भी कमाल लग रहे थे।

घर के हर कोने में दौड़ लगाया जो,
बेचारे दरवाज़े भी अब बेहाल लग रहे थे।

सोया फिर उठकर खाया और फिर सोया,
अब तो ये बिस्तर भी बवाल लग रहे थे।

ये कोरोना ने कैसा खौफ मचा रखा,
सारे सामान अब माया जाल लग रहे थे। Corona vacation😁


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