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White आज कालेज से लौटते समय एक दुकान पर दृष्टि अचा

White आज कालेज से लौटते समय एक दुकान पर दृष्टि अचानक से आ रूकी ऐसे लगा मानो मैं एकदम से दस बारह वर्ष पूर्व स्मृतियों में खो गई, वैसे तो इन दुकानों या बाजारों से मैं अपरिचित नहीं पर बात है भाव कि कब इस ह्रदयतल में ये बात आ जाए उन दिनों कि बात याद आई जब बुखार आने पर मां के साथ उंगलियां पकड़ अपने घर से थोड़ी दूर क्लीनिक पर जाया करते थे तब हमें बीमारियों से डर नहीं लगता था,और बीमार होने का मन होता था ,मां का प्यार और दुलार हमें इतना मिलता है हम सब उसके आदि हो जाते हैं और जिसका एहसास शायद है कि हमें शैशवावस्था में हो जाय परंतु हम सब मूरख इंसान समझ नहीं पाते,मुझे आज वो वस्तु दिखी आजकल शायद गायब ही हो गई है अब आप क्या कहते हैं पता नहीं पर मेरे यहां हमारी टोली में इसे नल्ली कहां करते थे उन दिनों ,वैसे ये चिप्स होती है ,जब दवा लेकर वापस आते तो मम्मी बहुत सी चीजें बोलती कि बेटा ये ले  लो पर कहां एक बच्चे को इतनी समझ उसे तो यही नल्ली चाहिए होती थी जिसे मैं अपनी सारी उंगलियों में लगाकर खाती और सच मानों ,आज भी याद करती हूं तो बड़ा सुखद एहसास होता है कि काश मैं फिर छोटी हो जाऊं और  मम्मी की उंगलियां पकड़ चलूं,दादी के पास लेटकर घंटो तक कहानियां सुन सकूं,और आज मैं फिर से बीमार हूं और घर जा रही पर आज भी मेरी मां मुझे वही प्यार दुलार देती हैं जिससे मेरे सारे दर्द तो न जाते पर उन्हें देख आधे से अधिक तो गायब ही जाते हैं,क्योंकि आज का माहौल दिखावे से भरा है इसलिए मैंने पढा था कि जो हो वही रहो दिखावा मत करो तो कैसा है आपका अपनी मां के साथ संबंध शायद ऐसा ही क्योंकि मां तो मां होती है,जिनकी बेटिया धडकन होती हैं ,बेटों को देख उन्हें जिस आनन्द की अनुभूति होती है उसे केवल एक मां समझ सकती है ,अन्य कोई नहीं इसलिए अभी वक्त है एक बार अपनी मां को गले लगाकर देखना क्या मैं सही हूं?

©Shilpa Yadav #Thinking #mother#shilpayadav
White आज कालेज से लौटते समय एक दुकान पर दृष्टि अचानक से आ रूकी ऐसे लगा मानो मैं एकदम से दस बारह वर्ष पूर्व स्मृतियों में खो गई, वैसे तो इन दुकानों या बाजारों से मैं अपरिचित नहीं पर बात है भाव कि कब इस ह्रदयतल में ये बात आ जाए उन दिनों कि बात याद आई जब बुखार आने पर मां के साथ उंगलियां पकड़ अपने घर से थोड़ी दूर क्लीनिक पर जाया करते थे तब हमें बीमारियों से डर नहीं लगता था,और बीमार होने का मन होता था ,मां का प्यार और दुलार हमें इतना मिलता है हम सब उसके आदि हो जाते हैं और जिसका एहसास शायद है कि हमें शैशवावस्था में हो जाय परंतु हम सब मूरख इंसान समझ नहीं पाते,मुझे आज वो वस्तु दिखी आजकल शायद गायब ही हो गई है अब आप क्या कहते हैं पता नहीं पर मेरे यहां हमारी टोली में इसे नल्ली कहां करते थे उन दिनों ,वैसे ये चिप्स होती है ,जब दवा लेकर वापस आते तो मम्मी बहुत सी चीजें बोलती कि बेटा ये ले  लो पर कहां एक बच्चे को इतनी समझ उसे तो यही नल्ली चाहिए होती थी जिसे मैं अपनी सारी उंगलियों में लगाकर खाती और सच मानों ,आज भी याद करती हूं तो बड़ा सुखद एहसास होता है कि काश मैं फिर छोटी हो जाऊं और  मम्मी की उंगलियां पकड़ चलूं,दादी के पास लेटकर घंटो तक कहानियां सुन सकूं,और आज मैं फिर से बीमार हूं और घर जा रही पर आज भी मेरी मां मुझे वही प्यार दुलार देती हैं जिससे मेरे सारे दर्द तो न जाते पर उन्हें देख आधे से अधिक तो गायब ही जाते हैं,क्योंकि आज का माहौल दिखावे से भरा है इसलिए मैंने पढा था कि जो हो वही रहो दिखावा मत करो तो कैसा है आपका अपनी मां के साथ संबंध शायद ऐसा ही क्योंकि मां तो मां होती है,जिनकी बेटिया धडकन होती हैं ,बेटों को देख उन्हें जिस आनन्द की अनुभूति होती है उसे केवल एक मां समझ सकती है ,अन्य कोई नहीं इसलिए अभी वक्त है एक बार अपनी मां को गले लगाकर देखना क्या मैं सही हूं?

©Shilpa Yadav #Thinking #mother#shilpayadav
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Shilpa Yadav

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