निर्झर झर-झर जाता है मुक्त कंठ से गाता है चट्टानों की छाती से मधुमेदित रस उपजाता है निर्जन मन की आतुरता की सत्वर ताप मिटाता है आह! मधुर चंचल हिरनी सा भर कुलाँच हुलसता है कर्णों में छम-छम गुँजन कर हृद श्रोत सरस कर जाता है किस बिरहिन के आह्वान पर आतुर पिय दौड़ा आता है बुछुड़न के गीत,मन आश मिलन कैसी मादकता छाता है #waterfalls#giftingto#Yqnature#yqlove#yqhindi