झूठों के जहां में एक मैं ही तो काफ़िर हूं मैं सच के सफ़र में इकलौता मुसाफ़िर हूं खुद का मैं खुदा हूं जग से हूं जुदा रहता आऊं ना समझ में इकलौता मैं नादिर हूं सब दर्द सुनाते हैं रब से मगर रब का जो रंज है सुनाता इकलौता मैं जाकिर हूं सब छीन लिया मुझसे जालिम ये जमाने ने सब हैं घर के अंदर इकलौता मैं बाहिर हूं अपनी खुशियां अपने हाथों लुटा के मैं गम लेने में सब का इकलौता मैं माहिर हूं *काफ़िर:- नास्तिक,*नादिर:- अनोखा,*जाकिर:- वर्णन करनेवाला झूठों का शहर by-Sir ji #Nojoto #nojotohindi #शायरी #Love #findingyourself