आवाज़ भटक गई होगी ******************* पुकारा तो था तुम्हें मेरी आवाज़ ग़ुम हो जाने तक तुम्हारी ख़ामोशी के सागर में मानो एक नदी बह रही हो पसीने की तरह समंदर की पेशानी पर और समंदर तन्मय लीन हो अपनी उष्ण तपस्या में मैं पी गया था मौन तुम्हारा मेरी आवाज़ की प्यास बुझने तक मेरी नदी नदी ही रही समंदर न बन सकी तुम्हारा विशाल समंदर भी मगर वंचित ही रहा मेरी नदी की मिठास से छूने से नर्म गर्म का अहसास भर होता है मुँह बंद रखने तक स्वाद का पता नहीं चलता मैंने पुकारा तो था किसी चौराहे पर आवाज़ भटक गई होगी. ©malay_28 #आवाज़