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जहाँ तुम चले गये: यहां किसी को भूख न लगती, कभी कि

जहाँ तुम चले गये: 
यहां किसी को भूख न लगती,
कभी किसी को प्यास न लगती,
कोई किसी के लिये न रुकता,
कोई किसी को देख न सकता।। 

कोई न होते सगे सम्बन्धी,
चिन्ता खतम न तेजी, मन्दी,
भाषा सबकी होती 'मौन'
स्वयं शून्य, तो अपना कौन? 

कोई स्वाद, न कोई गन्ध,
कोई रंग न कोई ढंग,
ना छाया ना होती धूप,
ना काया, ना कोई रूप।। 

स्वर्ग, नर्क, मोक्ष, पुनर्जन्म,
मिलता जिसके जैसे कर्म,
बस मिलते संकेत विचित्र,
करुणाविहीं, बने है दण्ड।। 

मांगते सब, एक अवसर,
रहना बस मनुष्य बनकर,
भुगतें कई योनि जाकर, जो
मनुज न जिया, मनुज बनकर।।


.
💐

©Tara Chandra #मरने_के_बाद
जहाँ तुम चले गये: 
यहां किसी को भूख न लगती,
कभी किसी को प्यास न लगती,
कोई किसी के लिये न रुकता,
कोई किसी को देख न सकता।। 

कोई न होते सगे सम्बन्धी,
चिन्ता खतम न तेजी, मन्दी,
भाषा सबकी होती 'मौन'
स्वयं शून्य, तो अपना कौन? 

कोई स्वाद, न कोई गन्ध,
कोई रंग न कोई ढंग,
ना छाया ना होती धूप,
ना काया, ना कोई रूप।। 

स्वर्ग, नर्क, मोक्ष, पुनर्जन्म,
मिलता जिसके जैसे कर्म,
बस मिलते संकेत विचित्र,
करुणाविहीं, बने है दण्ड।। 

मांगते सब, एक अवसर,
रहना बस मनुष्य बनकर,
भुगतें कई योनि जाकर, जो
मनुज न जिया, मनुज बनकर।।


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©Tara Chandra #मरने_के_बाद
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Tara Chandra

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