भर्तियों को लेकर उत्तर प्रदेश के अभ्यार्थियों की आक्रोशित होते हैं तो इसे गंभीरता से लेकर इसके कारण पर ध्यान देना जाना चाहिए यह सुनकर यह अजीब लगता है कि माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड 11 साल बाद भी अशासकीय सहायता प्राप्त की डीडी मध्यम विद्यालयों के लिए प्रधानाचार्य की भर्ती को पूरा नहीं कर सका यह भर्ती 2011 में बसपा सरकार में शुरू हुई थी और इसके बाद दो सरकारों का कार्यकाल और पूरा हो गया इसमें कई अध्यापक तो प्रधानाचार्य बनने का सपना देखते देखते रिटायर भी हो गए और अब तक सिर्फ 6 मंडलों में ही प्रधानाचार्य का चयन किया जा सका यही हाल 2013 के प्रधानाचार्य भर्ती का भी है इसमें अब चयन प्रक्रिया शुरू हुई है भर्तियों में विलंब के कारण हो सकता है कि लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी उस संस्था की होनी चाहिए जिन जिस पर प्रक्रिया की पूरी जिम्मेदारी है ऐसी संस्थाओं को जवाबदेही बनाना चाहिए चाहे ताकि अभ्यर्थियों में स्वाद भावना पैदा हो संस्थाओं में आंसू अभी आरती ही हाईकोर्ट का आरा लेने का विवश होते हैं माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ना सिर्फ आ सकते सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के लिए प्रधानाचार्य का चयन करता है बल्कि शिक्षकों का चयन करना भी उसकी जिम्मेदारी का काम भी बहुत ही दिमाग से हो रहा है इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि ऐसा क्यों ऐसे विद्यालयों में भेजा जाए जहां पद रिक्त स्थान नहीं थे 2016 की भर्ती में बड़ी संख्या में शिक्षक से लेकर शिक्षा अधिकारी तक भटकने के लिए मजबूर हैं ©Ek villain # भर्तियों में विलंब #fog