सारे रिश्ते - नाते तोड़ आया हूँ , ग़ैरों के ख़ातिर अपनो को ही छोड़ आया हूँ । अब एक सवाल सा रह गया दिल में की , छोड़ उन्हें आया हूँ या ख़ुद को ही तोड़ आया हूँ । अब मंज़िल का तो कोई पता नहीं , ख़ुद को कहीं आधी राह में ही छोड़ आया हूँ । जिस्म से तो फिरता रहा हूँ दरबदर , पर शायद रूह वहीं छोड़ आया हूँ , जहाँ अपनों से रिश्ता तोड़ आया हूँ । अब सिर्फ़ एक टूटा हुआ साज़ हूँ , जो किसी ने नहीं सुनी वो अनकही आवाज़ हूँ । अब तो ख़ुद में ही एक राज़ और ख़ुद से ही नाराज़ हूँ , सारे रिश्ते - नाते तोड़ आया हूँ , ग़ैरों के ख़ातिर अपनो को ही छोड़ आया हूँ । #Alone