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करके दीदार तेरी तस्वीर के मन में आज यह विचार आया ह

करके दीदार तेरी तस्वीर के मन में आज यह विचार आया है
तेरी सुंदरता को अपने शब्दों से हसीन अलंकारों संग सुशोभित करके उसे वर्णन करने का सौभाग्य मेरी कलम ने पाया है।
यूं ही नहीं लिखा तेरी आंखों को सबसे नशीला,
तेरे नैनों में डूब कर मैंने खुद को किसी सुकून से भरे हुए नशे में मदहोश पाया हैं।
तेरी खुली जुल्फे लगती है मुझे कोई वशीकरण करने वाली विद्याएं,
जब बांधती हो तुम जुल्फें अपनी तो मैं खुद को तेरी उस बंधी हुई जुल्फों में मोहित हो बंधा हुआ पाया है ।
तेरे अधरों को लिखा है मैंने प्रेम रस से भरा समंदर कोई,
 तुमने दीदार करवाके अपने अधरों का मेरे मन में एक प्रेमायुक्त इस्मात भरी शांति  अनुभव करवाया हैं।
तेरे माथे पर सजी हुई बिंदी को यूं ही नहीं बवाल लिखा मैंने ,
अपनी सादगी से तुमने सौंदर्य की पराकाष्ठा को छूकर स्वर्ग की अप्सराओं को भी अपने आगे झुकाया है।
तेरे कानों के झुमको की तारीफ में यूं ही नहीं मैंने उसे काम मनहर्ता लिखा,
देखा है मैंने कैसे तुमने मंद मंद मुस्कुरा कर अनंत कोटि बसंत ऋतुओं को बहकाया है।
करने आया था दीदार तेरे चेहरे के पर यूं ही हुआ बेपर्दा चेहरा तेरा यह मुसाफिर सा शायर अपने होश गवा आया है।

©Musafir ke ehsaas
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