कल लोगों को ढूँढता था आज लोग ढूँढते हैं सब खेल है समय का यही यार सोचते हैं पहचान कर भी जो मुझे पहचानता नहीं था बात आके अब वही रिश्ते की करते हैं नहीं जिन्हें कल पर भरोसा सलाम हम करते उन्हें काम अक्सर आज का जो आज करते हैं है वज़ह बस एक हीं इसलिए बनती नहीं बात वह हमसे सदा दौलत की करते हैं पैसा-पैसा करते-करते भौंकते हीं मर गया हम अभी से हीं फ़क़त राम-राम रटते हैं राह चुनते हैं अलग जो और कुछ करते नया उस शख़्स की चरचा अजी संसार करते हैं मंज़िल को पाना तभी है बहुत देता सुकूं 'रंग' काँटे पाँव में जब लाख चुभते हैं - ललित रंग ©Lalit Mishra ❤️दोस्तों पेशे ख़िदमत एक ग़ज़ल❤️ #clouds