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धुएँ सी उड़ चली है जिंदगी दो कश फूँक के मुँह से लग

धुएँ सी उड़ चली है जिंदगी 
दो कश फूँक के मुँह से लगा लो 
हर खुशी हानिकारक है बेहद हो तो 
यूँ गम से भी थोड़ा वास्ता बना लो #आज_का_ज्ञान 

प्रकृति हर मोड़ पर एक शिक्षक की तरह पेश आती है । जब जब हम मनुष्यता की हद पार करते हैं , खुद को उससे दूर लिए जाते हैं , उसकी शालीनता और सहनशक्ति का फायदा उठाते हैं , उसके विश्वास के साथ छेड़ छाड़ करते हैं , उसे मजबूरन अपना विकराल रूप दिखाना पड़ता है , वापस राह पर लाने के लिए उसे हमें ना चाहते हुए भी सजा सुनानी पड़ती है । प्रकृति माँ है और माँ कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहेगी । निश्चित ही उसके ऐसे रूप की कोई कड़ी वजह रही होगी । 
पिछले दिनों फोनि ने हमारे ओड़िशा में गहरी छाप छोड़ी , मनुष्य के जीवन में और उसके जहन में भी । यहाँ के हर इंसान के दिलो दिमाग पर इस कदर डर का जमावड़ा है जैसे की कोई कैदी को थर्ड डिग्री टॉर्चर के बाद होती है । हर ओड़िशा वासी मानसिक तौर पर अंदर से हिल गया है । सब कु़छ सही तो कभी ना कभी हो ही जाएगा , परन्तु अब की बार किसी भी तूफान के नाम से काम्पेगा । ऐसा नहीं है की यह पहला तूफान था , ओड़िशा को आदत है ऐसे तूफानों की , हर साल एक नया तूफान एक नए नाम से आता है और कु़छ ना कु़छ तोड़ फोड़ मचा कर ही जाता हैं । जिस प्रकार बच्चे को हमेशा मार पड़ने पर बच्चा दीठ हो जाता है उस पर मार का असर नहीं होता , वैसे ही हम दीठ हो चुके हैं । परन्तु इस बार की मार दाग छोड़ गई है । 
आधुनिकता की होड़ में हम कुदरत से दूर चले गये थे ,धरती, पानी और हवा को हमने फॉर ग्रांटेड ले लिया था । पानी , बिजली का अनावश्यक खर्च , मोबाइल फोन और टीवी का अत्यंत उपयोग तो दुनिया भर से जोड़ कर खुद को परिवार से अलग कर रहा था , हर समय ए सी और पंखे की हवा ने हमें गद्दे का आदि बना रखा था और कुदरती हवा क्या होती है , वृक्ष किस तरह जरूरी हैं यह तो मनुष्य भूल ही चुका था , आसमान के तारों को निहार कर उसकी सुंदरता के नीचे सोना क्या कभी बच्चे एस सीख पाते ! क्या जमीन की ठंडक पाने को हम बिस्तर छोड़ पाते , क्या दादा दादी पोता पोती के बीच की अन्ताक्षरी देखने को मिलता ?  पता नहीं शायद ही कभी , लेकिन पिछले दिनों हर वो चीज देखने को मिली जो हमें कुदरत के और नजदीक ले गई और हर रिश्ते में अहमियत भर गई । परिश्रम का फल मीठा और महनत की पानी मीठी होती हैं इसका अर्थ बता गई । मुझे दुख है नुकसान का अवश्य पर खुशी है इस दर्शन की । तभी तो कहते हैं जीवन के खुशी में इतना मत रम जाओ की गम झेल ही ना पाओ । खुशी को जीते हुए गम को झेलने की हिम्मत रखो । 

#रिंकूवाणी
धुएँ सी उड़ चली है जिंदगी 
दो कश फूँक के मुँह से लगा लो 
हर खुशी हानिकारक है बेहद हो तो 
यूँ गम से भी थोड़ा वास्ता बना लो #आज_का_ज्ञान 

प्रकृति हर मोड़ पर एक शिक्षक की तरह पेश आती है । जब जब हम मनुष्यता की हद पार करते हैं , खुद को उससे दूर लिए जाते हैं , उसकी शालीनता और सहनशक्ति का फायदा उठाते हैं , उसके विश्वास के साथ छेड़ छाड़ करते हैं , उसे मजबूरन अपना विकराल रूप दिखाना पड़ता है , वापस राह पर लाने के लिए उसे हमें ना चाहते हुए भी सजा सुनानी पड़ती है । प्रकृति माँ है और माँ कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहेगी । निश्चित ही उसके ऐसे रूप की कोई कड़ी वजह रही होगी । 
पिछले दिनों फोनि ने हमारे ओड़िशा में गहरी छाप छोड़ी , मनुष्य के जीवन में और उसके जहन में भी । यहाँ के हर इंसान के दिलो दिमाग पर इस कदर डर का जमावड़ा है जैसे की कोई कैदी को थर्ड डिग्री टॉर्चर के बाद होती है । हर ओड़िशा वासी मानसिक तौर पर अंदर से हिल गया है । सब कु़छ सही तो कभी ना कभी हो ही जाएगा , परन्तु अब की बार किसी भी तूफान के नाम से काम्पेगा । ऐसा नहीं है की यह पहला तूफान था , ओड़िशा को आदत है ऐसे तूफानों की , हर साल एक नया तूफान एक नए नाम से आता है और कु़छ ना कु़छ तोड़ फोड़ मचा कर ही जाता हैं । जिस प्रकार बच्चे को हमेशा मार पड़ने पर बच्चा दीठ हो जाता है उस पर मार का असर नहीं होता , वैसे ही हम दीठ हो चुके हैं । परन्तु इस बार की मार दाग छोड़ गई है । 
आधुनिकता की होड़ में हम कुदरत से दूर चले गये थे ,धरती, पानी और हवा को हमने फॉर ग्रांटेड ले लिया था । पानी , बिजली का अनावश्यक खर्च , मोबाइल फोन और टीवी का अत्यंत उपयोग तो दुनिया भर से जोड़ कर खुद को परिवार से अलग कर रहा था , हर समय ए सी और पंखे की हवा ने हमें गद्दे का आदि बना रखा था और कुदरती हवा क्या होती है , वृक्ष किस तरह जरूरी हैं यह तो मनुष्य भूल ही चुका था , आसमान के तारों को निहार कर उसकी सुंदरता के नीचे सोना क्या कभी बच्चे एस सीख पाते ! क्या जमीन की ठंडक पाने को हम बिस्तर छोड़ पाते , क्या दादा दादी पोता पोती के बीच की अन्ताक्षरी देखने को मिलता ?  पता नहीं शायद ही कभी , लेकिन पिछले दिनों हर वो चीज देखने को मिली जो हमें कुदरत के और नजदीक ले गई और हर रिश्ते में अहमियत भर गई । परिश्रम का फल मीठा और महनत की पानी मीठी होती हैं इसका अर्थ बता गई । मुझे दुख है नुकसान का अवश्य पर खुशी है इस दर्शन की । तभी तो कहते हैं जीवन के खुशी में इतना मत रम जाओ की गम झेल ही ना पाओ । खुशी को जीते हुए गम को झेलने की हिम्मत रखो । 

#रिंकूवाणी
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