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कवि नही मरता है, "स्याही" में आत्मा अपनी छोड़ जाता

कवि नही मरता है,
"स्याही" में आत्मा अपनी छोड़ जाता है,
कलम से बीज अमरत्व का वो बोता है,
   कवि नही मरता है।
              "नश्वरता" नहीं भाती उसको,
            "  विदेह" हो कर भी वह "अक्षय" होता है,
              मौन भला कहाँ स्वीकार पाया अब तक, 
              संवाद में ढाल कर सहज ही खुद को अमर्त्य
nilmani9057

Nilmani

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कवि नही मरता है, "स्याही" में आत्मा अपनी छोड़ जाता है, कलम से बीज अमरत्व का वो बोता है, कवि नही मरता है। "नश्वरता" नहीं भाती उसको, " विदेह" हो कर भी वह "अक्षय" होता है, मौन भला कहाँ स्वीकार पाया अब तक, संवाद में ढाल कर सहज ही खुद को अमर्त्य

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