इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया ए-ज़िन्दगी चलने का न सही, सम्भलने का हुनर तो आ गया इतनी सी बात थी जो समन्दर को खल गई... पता नही यार का़ग़ज़ की नाव कैसे भँवर से निकल गई...... #kumardil143@gmail.com ©Dilip Kumar #kumardil